मां हैं तो सब कुछ है।

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कल मदर्स डे है इसलिए आज की मेरी पोस्ट सारी मम्मीयो के नाम है ।वैसे तो मां के बारे में क्या लिखें  लिखने को तो बहुत कुछ है  लेकिन मां की ममता, अनकंडीशनल लव ,डेडिकेशन,सैक्रिफाइस इन सब के आगे तो शायद शब्द बने ही नहीं है। इसीलिए तो मां को शब्दों में बयां कर पाना बहुत मुश्किल है और लिखने बैठे तो एक बुक भी कम पड़ जाए।ये  मम्मीया होती ही ऐसी है अपनी रातों की नींद दिन का चैन खत्म कर, अपने बच्चों को बड़ा करती है बच्चा बीमार हो तो ना दिन देखती है ना रात बस शुरू हो जाती है देखभाल करने। पता नहीं यह हुनर मा कहां से लाती है।ठीक से सो नहीं पाती लेकिन घर के किसी भी काम में कभी भी कमी नहीं रखती हर सदस्य का वैसे ही ध्यान रखती है जैसे हमेशा रखती आई है। यू ही नही नारी को त्याग की मूरत कहां गया है। कुछ माए तो जॉब करने के साथ-साथ घर के सारे काम और बच्चों दोनों को देखती  है।इतना सब कैसे करती है इनके पास ना तो कोई अलादीन का चिराग होता है, ना ही कोई जीनी लेकिन फिर भी मां तो मां होती है ना जाने कितनी थकान के बाद भी यह अपने बच्चों के साथ खेलने का ,उन्हें पढ़ाने का ,और खाना खिलाने का समय भ...

Bad effects of adult advertisement on kids




आज कल हर घर में TV है ।आज का बच्चा बच्चा TV देखता है ।लेकिन मैं बात TV देखने की नहीं कर रही TV देखना कोई बुरी बात नहीं है अगर जरूरत से ज्यादा ना देखी जाए तो। यह तो मनोरंजन का साधन है ।लेकीन जो टीवी पर adult advertisement आते हैं उनका बच्चों के मन पर क्या असर होता है इस बात पर शायद आप लोगों ने भी सोचा होगा।  advertisement अपने  product को बेचने के लिए और अपने product की जानकारी दूसरों तक पहुंचाने के लिए  एक अच्छा  माध्यम है ।  advertisement पर पुरी तरह से रोक भी नही लगाई जा सकती लेकिन इस से संबंधित नियमों का पालन होना चाहिए। advertisement बनाते  समय यह ध्यान देना चाहिए की यह कानून ,नैतिकता ,सामाजिक मान्यता और धार्मिक संवेदनशीलता के विपरीत ना हो अपमानजनक ,अश्लील ना हो ।आजकल के बच्चे 90's के  बच्चों के जैसे नहीं है। जो देखते हैं उसके बारे में पूछते हैं । तो आप ही बताए जब बच्चे TV पर adult add देखते होंगे तो उनके दिमाग में क्या आता होगा ?बच्चे समय से पहले ही बड़े हो रहे हैं जो चीजें हम कॉलेज में आकर समझ रहे थे बच्चे कम  उम्र में समझ रहे हैं । आपने देखा होगा 90 के दशक में सफोला का एक विज्ञापन आता था ।उसमें एक छोटा बच्चा जब घर छोड़कर जा रहा होता है तो उसे जलेबी का लालच देकर रोक लिया जाता है ।यह एक लंबे समय तक लोगों के बीच छाया रहा इसमें कहीं भी दर्शकों को परेशान नहीं किया शायद इसीलिए सफोला ने हर घर में अपनी जगह बना ली थी ।मनोवैज्ञानिक कहते हैं की खासकर 10 वर्ष से कम की उम्र के बच्चे विज्ञापन में ज्यादा विश्वास करते हैं ।कई ऐसे भी हैं जो सही और गलत में अंतर भी नहीं कर पाते ।70's में अमेरिका में विज्ञापन से बच्चों पर पड़ने वाले असर के बारे में काफी चर्चा हुई और उसके बाद कानून भी बना ।वहां विज्ञापन पब्लिक फोरम से अनुमोदित होने के बाद ही दिखाए जाते हैं ।जर्मनी और कई देशों में तो बच्चों के कार्यक्रम से एक घंटा आगे या पीछे विज्ञापन नहीं दिखाया जा सकता।हमारे इंडिया के कंज़र्वेटिव ग्रुप में कंडोम के advertisement की complaint के बाद हमारी गवर्नमेंट ने कुछ महीनों पहले ही यह कदम उठाया और कानून बनाया की रात 10:00 बजे से सुबह 6:00 बजे तक ही adult  advertisement tv पर दिखाया जाए ।क्योंकि उस वक्त कुछ लोग ही TV देखते हैं ।चलो देर से ही सही कुछ हद तक गवर्नमेंट ने माता पिता की बच्चों को लेकर टेंशन थोड़ी कम कर दी है। हर चीज की अवेयरनेस बच्चों को भी जरूरी है। लेकिन सही समय पर और इसके लिए बच्चों के माता-पिता ही उन्हें समझा सकते हैं।

Comments

  1. hi..Garima.....sahi baat hai aaj kal her parents ki Yahi problem hai ki baccha TV par Dekhte Samay kuch adults advertisement se.related kuch Sawal puch beta to Kaise samjhenge..aapne bahut acche subject par apna Vichar vyakt Kiya Hai....very well done keep it up..

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