मां हैं तो सब कुछ है।

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कल मदर्स डे है इसलिए आज की मेरी पोस्ट सारी मम्मीयो के नाम है ।वैसे तो मां के बारे में क्या लिखें  लिखने को तो बहुत कुछ है  लेकिन मां की ममता, अनकंडीशनल लव ,डेडिकेशन,सैक्रिफाइस इन सब के आगे तो शायद शब्द बने ही नहीं है। इसीलिए तो मां को शब्दों में बयां कर पाना बहुत मुश्किल है और लिखने बैठे तो एक बुक भी कम पड़ जाए।ये  मम्मीया होती ही ऐसी है अपनी रातों की नींद दिन का चैन खत्म कर, अपने बच्चों को बड़ा करती है बच्चा बीमार हो तो ना दिन देखती है ना रात बस शुरू हो जाती है देखभाल करने। पता नहीं यह हुनर मा कहां से लाती है।ठीक से सो नहीं पाती लेकिन घर के किसी भी काम में कभी भी कमी नहीं रखती हर सदस्य का वैसे ही ध्यान रखती है जैसे हमेशा रखती आई है। यू ही नही नारी को त्याग की मूरत कहां गया है। कुछ माए तो जॉब करने के साथ-साथ घर के सारे काम और बच्चों दोनों को देखती  है।इतना सब कैसे करती है इनके पास ना तो कोई अलादीन का चिराग होता है, ना ही कोई जीनी लेकिन फिर भी मां तो मां होती है ना जाने कितनी थकान के बाद भी यह अपने बच्चों के साथ खेलने का ,उन्हें पढ़ाने का ,और खाना खिलाने का समय भ...

नयी बहू का स्वागत.



                       मानो तो हम कुमकुम जैसे ।
                       ना मानो तो राख से।
आज हम बात कर रहे हैं नई बहू और उसके नए परिवार के बारे में। नई बहू से ससुराल वालों को बहुत सी उम्मीदें रहती है। होनी भी चाहिए आखिर वह उनके परिवार की बहू है ।लेकिन उसके लिए थोड़ा समय भी देना चाहिए। बहू से उम्मीद रखने से पहले हमें बहू की उम्मीद पर खरे उतरने का सोचना चाहिए। हमको यह समझना चाहिए कि वह नए माहौल में खुद को सेट कर रही है ।हो सकता है नए माहौल में थोड़ा घबरा रही हो ना कि यह ताना देना चाहिए कि मां ने  कुछ नही सिखाया। बेटी से बहू बनना इतना आसान नहीं होता यह तो आप सबको पता है। जहां एक तरफ बेटी की मां उसको सिखाती है तेरे सास-ससुर तेरे मम्मी-पापा हैं, देवर भाई जैसा है ,ननद बहन जैसी है ,वहीं दूसरी ओर ससुराल में क्या होता है यह नहीं आता, यह नहीं लाई, ऐसा नहीं किया जरा सोचिए
ऐसा करना सही है????
ऊपर से ससुराल वालों को रिश्तेदार या पड़ोसी भड़कादे कि आपकी बहू आप को घर से निकाल देगी, आपके बेटे को उसकी तरफ कर लेगी भले ही बहू निर्दोष हो। उसने ऐसा कुछ करने के बारे में सोचा भी ना हो फिर भी उसके प्रति ससुराल वालों का नजरिया बदल जाता है।ऐसा क्यों ???        
आज हर तीसरे घर की यही कहानी है। बहुत सी महिलाओं की तो ऐसी सोच रहती है कि हमने भी ऐसा किया था तो हमारी बहू को भी करने दो ।वह लोग ऐसा नहीं सोचते कि जो हमने किया वह हमारी बहू ना करें तो अच्छा। जिस दिन दुनिया की सारी सासे ऐसा सोचने लगेगी उस दिन समाज बदलेगा। फिर दुनिया की कोई भी लडकी बहू नहीं बेटी बनकर रहेगी। यह कह देना बहुत आसान है  कि हमारी बहू नहीं बेटी है। लेकिन  बहू को बेटी बनाना उतना ही मुश्किल।बहूओ को लेकर हमें सोच बदलनी होगी। अगर हम हमारी बहू को समझेंगे तो वह भी हमें समझेगी नही तो सब औपचारिकता ही रह जाएगी।हम जब एक पौधा लगाते हैं तो उससे भी बहुत उम्मीदें होती है। कि वह फल देगा फूल देगा।लेकिन उसके लिए हमें उसे समय देना पड़ता है।उसे पानी देना पड़ता है।तब जाकर कहीं वह हमारी उम्मीदों पर खरा उतरता है।नई बहू भी उसी पौधे के समान होती है जिससे हमें बहुत सी उम्मीदें होती हैं। लेकिन वह उन उम्मीदों पर वह तभी खरी उतर सकती है जब उसे ससुराल में प्यार, अपनापन, मान सम्मान मिले ।उसे थोड़ा समय दे ताकि वह भी आपके आंगन में लहरा सके बिल्कुल उस  पेड़ की तरह ।जमाना बदल रहा है थोड़ा हमें भी बदलना होगा।पुरानी सोच को पीछे छोड़ना होगा। मैं खुद सोचती हूं अगर मेरी बहू या भाभी आएगी तो उसको ऐसा रखूंगी ।उससे कुछ गलती होगी तो उसको समझने की कोशिश करूंगी ना कि हर बात पर उसे ताना दूंगी।अगर मैं ऐसा सोच सकती हूं तो आप क्यों नहीं????

दोस्तों नई सोच कैसी लगी जरूर बताइएगा आशा करती हूं आप सभी को  पसंद आए आप मुझे लाइक और फॉलो भी कर सकते हैं |

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